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मैं कली हूँ

मेरी आवाज़ सुनो
मेरी आवाज़ सुनो
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मैं कली हूँ / मैं जानता हूँ –
जिस दिन मैं फूल बन जाऊंगा /
कइयों के आँखों में चढ़ जाऊंगा /
मुझे जुदा करके मेरी ही टहनियों से-
किसी माले में गूँथ दिया जाएगा /
या फिर किसी गुलदस्ते में पड़कर-
टेबल की शोभा बढ़ाऊंगा /
यदि सौभाग्यशाली रहा तो –
महापुरुषों या देव् प्रतिमाओं पर –
नहीं तो शवों या कब्रों पर जगह पाउँगा /
फिर कुछ ही पलों में कुम्हलाने लगेगी –
मेरी कोमल , रंगीन पंखुडिया /
तब सुगंध भी न बिखेर पाउँगा /
अगले दिन फेंक दिया जाएगा मुझे –
किसी कूड़ेदान में /
या फिर नाले में बहा दिया जाऊंगा /
इस तरह कलि से फूल बनते ही –
अपना अस्तित्व गवाऊंगा /
फिर भी मुझे खिलना है /
कलि से फूल बनना है /
इंतज़ार में है तितलियाँ /
मडरा रहे है भौरे /
चूसने को पराग –
तैयार बैठी है मधुमख्खियाँ /
इन्हें निराश तो नहीं कर पाउँगा /
खोलूंगा अपनी पंखुड़ियां /
बिखेरूँगा पराग /
इंतज़ार में है माली /
जानने को –
अपने मेहनत का परिणाम /
उसका विश्वास नहीं डिगाऊँगा /
मैं आज कली हूँ /
कल सुबह ही –
एक फूल बन जाऊंगा /

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