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उत्तर प्रदेश के योगी सरकार के सभी मदरसों में स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्रगीत गाने के आदेश के खिलाफ कई मुस्लिम संगठनों और इस्लामिक धर्मगुरुओं ने आवाज़ बुलंद की है। खबर है की भारतवर्ष के राष्ट्रगीत वन्दे मातरम को गैर इस्लामिक करार देते हुए कई मदरसों में इसे गाने नहीं दिया गया। समय-समय पर इस राष्ट्रगीत के गाने पर फतवे जारी होते रहे हैं।
2013 में मुस्लिम MP शाफिकुर रहमान बुरक, जब लोकसभा में यह गीत बजाय जा रहा था, तो लोकसभा छोड़कर चले गए थे। वन्दे मातरम् गीत का विरोध करने वाले मुसलामानों का कहना है कि इस गीत में माँ की वन्दना है, जो इस्लाम में वर्जित है। मगर उन्हीं मुसलमानों को यह ज्ञात होना चाहिए कि एक कट्टर इस्लामिक देश और भारत के पड़ोसी राष्ट्र बांग्लादेश के राष्ट्रगान, जिसे रबीन्द्रनाथ ने लिखा है, उसमे खुलकर मातृ वन्दना की गई है। बांग्लादेश के सभी नागरिक इसे श्रद्धा के साथ गाते हैं और उन्हें इसमें कहीं कोई आपत्ति नहीं है।
बांग्लादेश का राष्ट्रीयगान
बांग्ला लिपि में
আমার সোনার বাংলা
আমার সোনার বাংলা,
আমি তোমায় ভালবাসি।
आमार शोनार बांग्ला
आमार शोनार बांग्ला,
आमि तोमाए भालोबाशी.
मेरा प्रिय बंगाल
मेरा सोने जैसा बंगाल,
मैं तुमसे प्यार करता हूँ.
চিরদিন তোমার আকাশ,
তোমার বাতাস,
আমার প্রাণে বাজায় বাঁশি।
चिरोदिन तोमार आकाश,
तोमार बताश,
अमार प्राने बजाए बाशी.
सदैव तुम्हारा आकाश,
तुम्हारी वायु
मेरे प्राणों में बाँसुरी सी बजाती है।
ও মা,
ফাগুনে তোর আমের বনে,
ঘ্রানে পাগল করে,
মরি হায়, হায় রে,
ও মা,
অঘ্রানে তোর ভরা খেতে,
আমি কি দেখেছি মধুর হাসি।
ओ माँ,
फागुने तोर अमेर बोने
घ्राने पागल कोरे,
मोरी हए, हए रे,
ओ माँ,
ओघ्राने तोर भोरा खेते
अमी कि देखेछी मोधुर हाशी.
ओ माँ,
वसंत में आम्रकुंज से आती सुगंध
मुझे खुशी से पागल करती है,
वाह, क्या आनंद!
ओ माँ,
आषाढ़ में पूरी तरह से फूले धान के खेत,
मैने मधुर मुस्कान को फैलते देखा है।
কি শোভা কি ছায়া গো,
কি স্নেহ কি মায়া গো,
কি আঁচল বিছায়েছ,
বটের মূলে,
নদীর কূলে কূলে।
की शोभा, की छाया गो,
की स्नेहो, की माया गो,
की अचोल बिछाइछो,
बोतेर मूले,
नोदिर कूले कूले!
क्या शोभा, क्या छाया,
क्या स्नेह, क्या माया!
क्या आँचल बिछाया है
बरगद तले
नदी किनारे किनारे!
মা, তোর মুখের বাণী,
আমার কানে লাগে,
সুধার মতো,
মরি হায়, হায় রে,
মা, তোর বদনখানি মলিন হলে,
আমি নয়ন জলে ভাসি।
माँ, तोर मुखेर बानी
आमार काने लागे,
शुधार मोतो,
मोरी हए, हए रे,
माँ, तोर बोदोनखानी मोलीन होले,
आमि नोयन जोले भाशी.
माँ, तेरे मुख की वाणी,
मेरे कानों को,
अमृत लगती है,
वाह, क्या आनंद!
मेरी माँ, यदि उदासी तुम्हारे चेहरे पर आती है,
मेरे नयन भी आँसुओं से भर आते हैं।
जब कट्टर मुसलमानों को राष्ट्रगान में मातृ वन्दना स्वीकार है, तब भारत में इससे क्यों आपत्ति है, समझ से परे है। ऐसा नहीं है कि सभी मुसलमान इस गीत का विरोध करते हैं। कई मुसलमान हैं, जिन्हें इससे कोई आपत्ति नहीं है। मौलाना मुफ़्ती सैयद शाह बदरुद्दीन कादरी अलजीलानी ने कहा था कि यदि आप अपनी माता को झुककर प्रमाण करते हो और उनसे प्रार्थना करते हो, तो इसमें बुरा क्या है, बल्कि इसका अर्थ तो उनका सम्मान करने से है। राजीव गांधी सरकार के यूनियन मिनिस्टर आरिफ मोहम्मद खान ने इस गीत का उर्दू अनुवाद भी लिखा था, जिसकी शुरुआत तस्लीमत, मान तस्लीमत से हुई थी। बांग्लादेश की जनता से सीख लेते हुए भारत के सभी मुसलमानों को गर्व के साथ भारत का राष्ट्रगीत गाना चाहिए।
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