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रावण दहन

मेरी आवाज़ सुनो
मेरी आवाज़ सुनो
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दो पैर , दो भुजाएँ /
चौड़ी छाती, मजबूत कंधे –
बिशालकाय शरीर बनाई /
उस पर दस शीश लगाई /
पुतला निस्तेज पड़ा था /
फिर उसे सहारा दिया –
खड़ा किया /
फिर भी पुतला चुप था /
हाथों में हथियार थमाएँ /
आँखों में नफ़रत का रंग भरा /
पुतले में कोई हलचल ना हुई /
फिर भी मन ना भरा /
हाथ , पैर , पेट, पीठ ,
एक-एक अंग में बारूद भरा /
पुतला डरा, सहमा /
बारूद के जहर से कराहा /
लेकिन कुछ ना किया ना कहा /
फिर उस बारूद में आग लगा दी गई /
पुतला धूं- धूं करके जलने लगा /
अपने को बचाने के लिए /
छटपटाने लगा /
जलते बारूद बिखरने लगे /
लोगों पर गिरने लगे /
लोग जलने लगे /
गिरने -पड़ने लगे /
भागने चिल्लाने लगे /
एक दूसरे को कुचलने लगे /
अगले दिन लोगों ने कहा /
रावण, सचमुच बड़ा शैतान था /
पुतले की आत्मा ने अट्टाहास किया /
रावण बड़ा शैतान था ?
बनाया इसको –
वो क्या इंसान था ?
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