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अवकाश ग्रहण

मेरी आवाज़ सुनो
मेरी आवाज़ सुनो
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सरकारी कर्मचारी

अवकाश ग्रहण के महीनो पहले –
सेवा निवृत हो जाता है /
बची -खुची छुट्टियों का-
जमकर लुफ्त उठाता है /
जिम्मेवारियों के साथ -साथ –
अपूर्ण फाइलों को-
कनिष्ठों की तरफ सरकाता है /
भविष्यनिधि, पेंसन, ग्रेच्युटी –
की सारी औपचारिकताएं –
रिटायर्ड होने के पहले ही –
जब पूरी कर पाता है /
तब वह चैन की वंशी बजाता है /

सैनिक
अवकाश ग्रहण का समय नजदीक आते ही-
शोक में डूब जाता है /
मातृ भूमि के सेवा से –
निवृत होने को याद कर –
ना सोता है ना जाग पाता है /
बचे -खुचे समय में-
अपने वतन की खातिर –
ज्यादा से ज्यादा योगदान हेतु-
वह मौत से भी नहीं घबड़ाता है /
फिर भी अवकाश ग्रहण के दिन-
वरिष्ठों के सामने-
सेवा अवधी विस्तार के लिए /
रोता है , गिड़गिड़ाता है /
मौक़ा मिलते ही –
फिर नई उत्साह से –
देश सेवा में लग जाता है /

नेता
पता नहीं अवकाश ग्रहण का –
समय क्या कहलाता है ?
आँखों से ना दीखता है /
ना कानों से सुन पाता है
पद पाने के लिए –
केवल दौड़ता चला जाता है /
वरिष्ठ हो तो कनिष्ठों को-
कनिष्ठ हो तो वरिष्ठों को-
लंगड़ी मार गिराता है /
अस्सी, नब्बे सौ बरस तक भी –
पद के लिए लार टपकाता है /
हाथ, पैर, जबान जब –
सब जबाब दे जाता है /
तब भी नेता –
अवकाश ग्रहण से कतराता है /

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