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इनकार (लघु कथा)

मेरी आवाज़ सुनो
मेरी आवाज़ सुनो
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“सुरेश जी आप तो कल अपनी बेटी के लिए लड़का देखने गए थे ना ?”
“हाँ , गया था /”
“कैसा है लड़का ?”
“लड़का गोरा-चिट्टा, ६ फुट लम्बा, उभरा मस्तिस्क , मजबूत शरीर, किसी राजकुमार से कम नहीं लगता / मेरी बेटी की तुलना में तो बीस पड़ता है /”
“करता क्या है ?”
“केंद्रीय ऊर्जा आयोग में अधिकारी के पद पर है /”
“तब तो वेतन भी अच्छा -खाशा होगा / उपरवार भी कमा लेता होगा /”
“उपरवार का तो नहीं पता लेकिन वेतन अच्छा – खासा है /”
“परिवार कैसा है ?”
“घर में माँ -बाप और बेटा सिर्फ तीन लोग ही है / बाप राज्य सरकार में कर्मचारी थे / अब रिटायर्ड हो गए है / अच्छा -खासा पेंसन पाते है / माँ घर में ही रहती है / अपना एक बड़ा सा मकान भी है / निचे के कमरों को उनलोगों ने किराये पर दे रखा है /”
” मांग कितना का है /”
” कोई खास नहीं /’
“तब तो बड़ा अच्छा रिश्ता पाया है आपने / जल्द से सगाई कर दीजिये / शादी बाद में होती रहेगी /”
“मैं भी तो यही चाहता हूँ / लेकिन——”
“लेकिन क्या ?”
“मेरी बेटी ने ऐसे परिवार में शादी से इंकार कर दिया है /”
वो भला क्यों?
अकेला लड़का है वो भी अपने माँ -बाप के साथ रहता है / मेरी बेटी को भी अपने सास-ससुर के साथ रहना होगा / उनकी गुलामी करनी होगी / उनके पुराने संस्कार को मानने होंगे / और तुम तो जानते हो की मेरी बेटी किसी के अधीन नहीं रह सकती / संस्कार के नाम पर उसके पंखों को उड़ने से नहीं रोका जा सकता / इसलिए इंकार कर दिया है /

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