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हिस्सेदारी (एक लघुकथा )

मेरी आवाज़ सुनो
मेरी आवाज़ सुनो
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मुकेश ने अपने तबादले का पत्र साहब के सामने रखा और दोनों हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा/
“साहब , मुझे इस शहर से दूर तबादले का आदेश मिला है / ”
” हाँ, तो क्या हुआ ? तबादला तो होना ही था /” साहब ने उसके चेहरे को देखा /
” लेकिन इस तबादले से तो मै तबाह हो जाऊंगा /”
” कैसे”
“साहब / मेरी पत्नी इसी शहर में एक विद्यालय में शिक्षिका है / मेरा बच्चा यहीं पढ़ता है / हमलोग अपने पुस्तैनी मकान में साथ-साथ रहते है / यदि मेरा तबादला दूसरे शहर में हो जाता है तो वे लोग अकेले पड़ जायेंगे / यदि मैं उन्हें साथ रखना चाहू तो मेरी पत्नी को नौकरी छोड़नी होगी / मुझे दूसरे शहर में मकान किराये पर लेना होगा / काफी आर्थिक क्षती होगी / ” मुकेश ने हाथ जोड़े-जोड़े कह डाला /
साहब ने अपना सर ऊपर उठाया और कैलकुलेटर को हाथ में लिया /
“तुम्हारी पत्नी सैलरी कितना पाती है /”
” लगभग पच्चीस हजार प्रत्येक माह /”
” अर्थात यदि तुम्हारी पत्नी नौकरी छोड़ती है तो तुम्हे प्रत्येक महीना पच्चीस हजार का नुकसान /”
साहब ने कैलकुलेटर पर अपनी उंगलिया घुमाना शुरू किया / फिर पूछा –
” यदि दूसरे शहर में घर भाड़े पर लेना हो कितने खर्च आएंगे ?”
” साहब, करीब पांच हजार रुपये /”
” और कोई नुकसान ?” साहब ने जानना चाहा /
” यहाँ कुछ सब्जिया उगा लेता हूँ / वहाँ तो सब कुछ खरीदने होंगे / ”
साहब ने कैलकुलेटर से उंगलिया उठाते हुआ कहा ” इस तबादले से तुम्हे लगभग पैतीस से चालीस हजार रुपये प्रत्येक माह अर्थात चार लाख रुपये सालाना नुकसान होगा / सचमुच
ये एक बड़ी राशि है/ लेकिन यदि तबादला रुक गया तो तुम्हे सालाना चार लाख का फ़ायदा/”
फिर वे अपने चेयर पर फ़ैल कर अंगड़ाइयां लेते हुए धीमे से पूछे-
” लेकिन तुम्हारे सलाने चार लाख फायदे से मेरा क्या फायदा होगा ? मेरा ना तो कोई प्रमोशन होगा ना ही सैलरी में बढ़ोतरी /”
” साहब मैं और मेरा परिवार आपपर हमेशा अहसानमंद रहेगा /”
” अहसान से पेट भरता तो मै यहां नौकरी क्यों करता/”
” साहब कुछ तो कीजिये”
” तुम भी कुछ करो’
” क्या कर सकता हूँ?”
” तबादला रुकने से जो तुम्हे एक साल में फ़ायदा होगा वह तुम मुझे दे दो / मैं अभी-अभी तुम्हारा स्थानांतरण आदेश रद्द कर देता हूँ /”
मुकेश जो अब तक श्रद्धा से हाथ जोड़कर खड़ा था आश्चर्यचकित होकर साहब को घृणा की दृष्टि से देखा और मन ही मन सोचने लगा ये कैसी हिस्सेदारी?

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