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सड़कें

मेरी आवाज़ सुनो
मेरी आवाज़ सुनो
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सड़कें-
स्वयं कही नहीं जाती /
पड़ी रहती है हमेशा एक सा /
इस पर गुजरने वाले ही –
जाया करते है /
लेकिन पा जाती है श्रेय जाने का /
पूछते है लोग –
कहाँ तक जाती है ये सड़क ?
उत्तर भी मिल जाता है /
संकरी, चौड़ी, कच्ची, पक्की /
कही गढ्ढों को खुद में समाये /
तो कही खुद गढ्ढों में खो जाये /
ढ़ोती है राहगीरों को-
हलके और भारी वाहनों को /
कभी – कभी तो लगने लगता है /
मिट जाएगी /
लेकिन फिर आगे बढ़ने पर /
मिलने लगते है संकेत /
उसके जिन्दा रहने के /
अच्छी सडकों को प्रशंसा के शब्द –
सुनने मिले या नहीं /
ख़राब सड़के गालियां जरूर खाती है /
फिर भी अपना कर्तब्य निबाहने और –
अस्तित्व बचाये रखने के लिए /
संघर्ष जारी रखती है /
टूटती है लेकिन मिटती नहीं /
इसलिए श्रेय पाती है /
हमेशा चलते रहने का /

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