मेरी आवाज़ सुनो
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हाड़ है मांस है /
लेती अब भी साँस है /
सोती है, जागती है /
भोजन भी करती है /
फिर भी अब जीने की –
नहीं उसमे आस है /
बर्बर समाज की बनाई –
ज़िंदा एक लाश है /
ना रोती ना हंसती है /
मिलने से डरती है /
गूंगी ना बहरी फिर भी –
ना बोलती ना सुनती है /
गांव है, उसका घर है /
लोग है बाग़ है /
नीम का भी छांव है /
कमरे का अन्धेरा कोना /
टीस रहा घाव है /
बापू है, अम्मा है /
मीडिया का मजमा है /
पुलिस -प्रसाशन का-
चल रहा जांच है /
डॉक्टरी रिपोर्ट बतलाये –
आरोप बिलकुल सांच है /
फिर भी जीने से उसको –
साफ इनकार है /
जल्द आ जाये ऐसी-
मौत का इन्तजार है /
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