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अब गदहे भी घोड़े कहाने लगे है / (ग़ज़ल) [Contest)

मेरी आवाज़ सुनो
मेरी आवाज़ सुनो
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इस कदर अब बुरे वक्त आने लगे हैं /
सोएं मुर्गे, लोग उनको अब जगाने लगे हैं/

कश्ती डूबने की डर थी जिन्हे बीच भँवर में /
अपनी कश्ती ही खुद वो डुबोने लगे है /

ना दुःख में शामिल, सुख में मिलना बामुश्किल /
अब “फेसबुक” पर ही दोस्ती निभाने लगे है /

जवानी के जोश में हुए बेख़ौफ़ इस कदर /
मासूमों पर ही अपनी मर्दांगिनी दिखाने लगे है /

जिन्हे मालूम नहीं तख़्त क्या बला है “राजन”
अब वे ही केवल तख़्त पाने लगे है /

कैसी-कैसी हालातें पैदा हुई इस वतन में /
अब गदहे भी घोड़े कहलाने लगे है /

किनके भरोसे छोडू अपने प्यारे वतन को/
लूट में “काले” ही “गोरों” को हराने लगे है /

राजेश कुमार श्रीवास्तव “राजन”

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