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माँ तुझे सलाम (एक लघु कथा)

मेरी आवाज़ सुनो
मेरी आवाज़ सुनो
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रात को नींद न आनी थी न ही आई / ऐसे भी एक शादी-सुदा नौजवान जो पिछले दस महीने से नौकरी छुट जाने से बेकार घर पर बैठा हो उसके आँखों में नींद ना आना ही स्वाभाविक हैं / सुबह ही एक नई नौकरी के लिए साक्षातकार देने शहर जाना था सो जल्दी उठ गया / नहा-धोकर पूजाघर में जाकर भगवान के सामने बैठा, आँखे बंदकर ध्यान लगाया तो भगवान के जगह पर पिताजी का कड़क चेहरा सामने आने लगा / तुरंत आँखे खोलकर प्रार्थना के कुछ शब्द बुदबुदाये तो पत्नी की खीच-खीच याद आने लगी / जैसे -तैसे पूजा समाप्त कर उठा/ कपडे पहने / एक बार फिर से जरुरी कागजातों पर नजर डाला/ फाइल को तैयार किया / तभी पिताजी की कड़क आवाज़ सुनाई दी / “बस -भाडा है या चाहिए “/ मैंने नज़ारे झुकाए कहा-” पैसे शेष है / ” हाँ शेष तो होंगे ही /” “ये रखिये ” उन्होंने बीस का एक नोट मेरे हाथो में थमाया और फिर ऊँची आवाज़ में बोले ” यही लेकिन अंतिम है अब मैं घर में बैठाकर आपका और आपके श्रीमती जी का खर्चा नहीं चलाने वाला/ नौकरी मिली तो ठीक नहीं तो शहर में बहुत सारे काम है रिक्सा चलाइए , मजदूरी कीजिये लेकिन बिना कुछ कमाए घर में पैर नहीं रखियेगा / ” मैंने धीमे स्वर में कहा ” पिताजी ये नौकरी मुझे जरुर मिलेगी मुझे आशिर्बाद दीजिये / मै उनके दोनों पैरे को छूकर प्रणाम किया / उन्होंने बेरुखी से “ठीक है, ठीक है” कह कर आशिर्बाद दिया / मैं अपना जूता पहनने जब कमरे में गया तो पत्नी अभी भी सो रही थी / मैंने कहा ” उठो सुबह हो गई है / मै निकल रहा हु ” पत्नी ने करवट बदला और बोली ” मेरी तबियत ठीक नहीं है / और हाँ आते समय मेरे लिए शहर से एक साडी जरुर लेते आना / ” अपनी फ़रमाइस जताने के बाद वह फिर से सो गई / मै भी तुरंत वहा से हटा क्योंकि कुछ देर और ठहरा तो उसकी खीच-खीच शुरू हो जाती / अब मै कमरे के बाहर निकलकर माँ को खोजा / माँ दिख नहीं रही थी / मैंने आवाज़ लगाई-“माँ- माँ मै निकल रहा हूँ /” इतना सुनते ही माँ रसोईघर से दौड़ती हुई बाहर निकली और बोली ” बेटा समय हो गया है क्या ? थोडा देर रुक जा सब्जी बन गई है मैं तुरंत रोटी बना दे रही हूँ खा कर जाना / मैंने कहा ” नहीं माँ मुझे देर हो रही बस निकल जाएगी मैं शहर पहुच कर कुछ खा लूँगा / ” नहीं बेटा तुरंत हो जायेगा कहती हुई वह किचेन में दौड़ी और झटपट रोटिया सेंकने लगी / और तुरंत कुछ रोटी और सब्जी लाकर सामने रख दी ” खा ले बेटा ना जाने तू कब शहर पहुचेगा / कुछ खाने को मिलेगा या नहीं / घर से खाली पेट नहीं निकलते / मैंने रोटियां खानी शुरू की और वह रोटियां सेंक सेंक कर लाने लगी / तिन -चार रोटियां जबरदस्ती खानी पड़ी / इसी बिच वह रोली उठा लाई / पूजा का प्रसाद दिया और माथे पर तिलक लगाकर बोली ” घबडाना नहीं बेटा संभलकर जाना / हिम्मत रखना / भगवान ने चाहा तो जरुर तुझे नौकरी मिलेगी और यदि नहीं भी मिली तो भी घबराना नहीं अभी समय भागे नहीं जा रहा है / हो सकता है आगे इससे भी बढ़िया नौकरी लिखा हो तेरे नसीब में/ मैंने उनका पाँव छुआ / उसने मुझे गले से लगाकर अशिर्बाद दिया और बोली “संभलकर कर जाना बेटा संभलकर” /

धन्य है माँ / माँ तुझे सलाम /

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