Menu
blogid : 14057 postid : 72

भिक्षुक

मेरी आवाज़ सुनो
मेरी आवाज़ सुनो
  • 104 Posts
  • 421 Comments

वह रोज सुबह उठ जाता /
दाने-दाने का मोहताज़,
जब है इतना विकसित समाज/
कभी इधर, कभी उस घर,
वह निश्चित ही कुछ पाता,
जब रोज सुबह उठ जाता /

बिछावन उसका फुट-पाथ /
नहीं है उसे ऊँचे महलो की चाह /
अपने अधनंगे बदन से सबको-
अपना दुःख सुनाता /
वह रोज सुबह उठ जाता /

दुखी नहीं सुखी है वही-
भुत, भविष्य की चिंता नहीं है उसे /
रोज मांगकर लाता है –
पेट भर नंगी राहो पर-
नितदिन वह सो जाता है-
फिर खूब सुबह उठ जाता है /

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply