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मेरी चित्रकारी (कविता)

मेरी आवाज़ सुनो
मेरी आवाज़ सुनो
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मैंने अपने कैनवास पर –
एक चित्र उकेरा है /
हरा, लाल, पिला, नीला , भगवा, सफ़ेद,
जहाँ जो पाया भरा है /
लेकिन सभी रंग मिलकर –
इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगाये हैं /
कहीं गहरे तो कही उभरे,
मैंने भी क्या इनमे मेल बिठाये हैं /
क्या नाम दू इस खुबसूरत चित्रकारी को-
समझ नहीं पाया /
इसलिए मैंने कुछ विद्वान बुला लाया /
हिन्दू को इस चित्र में –
कोई “देवी” दिखती है/
मुसलमान इसे “हाजी बीबी” समझता है /
क्रिश्चन ने तो इसे “मरियम” समझ लिया /
सिख्ख ने इसे “सिख्खाणी” नाम दिया /
अगड़ों ने कहा-
यह परदे से झांकती कोई महारानी लगती है /
पिछडो ने बताया –
यह दुःख से कराहती कोई जनानी लगती है /
देवी, मरियम या सिख्खाणी
कौन महारानी या शोषित जनानी-
लोगों के सुझाये नाम ने मुझे-
बहुत परेशान कर दिया,
कुछ सोचकर मैंने इसे-
“भारत माता” नाम दे दिया

जय भारत मॉं

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