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मीडिया नहीं, विवेकानन्द को आदर्श मानें युवा समाज

मेरी आवाज़ सुनो
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किसी भी देश के विकास में उस देश के युवाओ का महत्वपूर्ण योगदान होता है I देश के उन्नत्ति की बागडोर युवा समाज के हाथ ही होती है I युवा समाज चाहे तो अपने मेघा, त्याग, परोपकार के बल पर अपने समाज, अपने देश को उन्नति के शिखर पर ले जा सकता है और वही युवा समाज भटक जाये तो देश को गर्त में भी धकेल सकता है I आज जब भारत में चहु ओर भ्रष्टाचार, बुराई, अपराध, लुट, हिंसा का बोलबाला है ऐसे समय में युवाओ का रोल मत्वपूर्ण हो गया है I लेकिन युवा समाज किस पथ पर चले, कौन सा आदर्श अपनाये जिससे देश और समाज का भलाई हो यह महत्वपूर्ण बात है I आज का युवा समाज व्यवसायिक मीडिया से ज्यादा प्रभावित नजर आ रहा है I वह दूरदर्शन, इंटरनेट, जैसे व्यवशायिक घरानों से नियंत्रित हो रहा है I ऐसे घराने युवा शक्ति का उपयोग अपने व्यावसायिक लाभ के लिए कर रहे है I युवा अपनी विशेष पहचान खो कर इनके इशारो पर नाच रहा है I उनका चारित्रिक, अध्यात्मिक, सांस्कृतिक पतन हो रहा है I युवा पुरुष नशा, हिंसा, अपसंस्कृति, भ्रष्टाचार, अनियमित जीवन शैली के गिरफ्फ्त में आ चूका है I वह केवल पैसा और भोग के पीछे भाग रहा है I महिलाएं फैसन और ग्लैमर को ज्यादा तरजीह दे रही है i परिवार और समाज नामक संगठन शेष हो रहे है i यदि युवा मीडिया की जगह विवेकानंद को अपना आदर्श बनाये तो भारत फिर एकबार विश्व गुरु बन सकता है I दरअसल स्वामी विवेकानंद में मेधा, तर्कशीलता, युवायों के लिए प्रासंगिक उपदेश जैसी कुछ ऐसी बातें हैं की युवा उनसे प्रेरणा ले सकते है I विवेकानंद ने कहा था कि युवाओं को गीता पड़ने के बजाय फुटबाल खेलना चाहिए I युवाओ की स्नायु फौलादी होनी चाहिए क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मष्तिस्क का निवास होता है I मिडिया को युवाओ के स्वस्थ रहने से कोई मतलब नहीं है I विवेकानंद कहा करते थे कि “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये I मीडिया तभी तक आपको साथ देगा जब तक उसकी TRP ठीक ठाक चलती रहेगी I स्वामी जी ने युवाओ कि अहं की भावना को ख़त्म करने के उद्देश्य से कहा था ” यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खड़े हो जाओगे, तो तुम्हे सहायता देने के लिए कोई भी आगे नहीं बढेगा I यदि सफल होना चाहते हो तो पहले अहं ही नाश कर डालो” I आधुनिक मिडिया आपको लीडर बनाकर बड़े पोस्ट और पैसा के पीछे भागने के लिए प्रोत्साहित करता है I स्वामी जी के अनुसार जीवन इन्द्रिय सुख अथवा व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं होता I मिडिया खुली संस्कृति के माध्यम से मौजमस्ती को बढावा देता है I सार यह है की यदि युवा विवेकानंद को अपना आदर्श बनाकर उनके ऊपदेशो के आधार पर आगे बड़े तो भारत फिर से विश्व गुरु बनकर विश्व शांति और मानव कल्याण में अपना मत्वपूर्ण योगदान कर सकता है I

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