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ठुठ पेड़

मेरी आवाज़ सुनो
मेरी आवाज़ सुनो
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हे ! पथिक मुझे माँफ करना।
इस भरी दुपहरी में-
तुम्हारी तपन मिटाने के लिए –
मेरे पास अपने हरे कोमल पत्तियों की छाया नहीं हैं।

हे ! पथिक मुझे माँफ करना।
आज इस निर्जन भूखंड पर-
तुम्हारी क्षुधा मिटाने के लिए-
मेरी सुखी डालियों में अब फल नहीं है।

हे ! पथिक मुझे माँफ करना।
इस चिलचिलाती धुप में-
तुम्हारी तृष्णा मिटाने के लिए-
मेरी काया में अब रत्ती भर कहीं रस नहीं है।

लेकिन, हे! पथिक-
कभी मेरी हरी- हरी डालियों में लदी –
हरी-हरी पत्तियां, अपनी मृदु छाया से-
मिटाती थी तपन अनगिनत पथिकों की।

मेरी डालीयों से लटकते-
मीठे रसीले फल-
सदैव रहते थे तैयार मिटाने को-
क्षुधा, तृष्णा गुजरते हर पथिकों की।

मेरे पास की झाडीयां और-
हरी, मुलायम घासें, मेरी सहेलियां
जिसपर बैठ कर आराम पाते थे तुम।
और, तुम्हे सुकून में देखकर खिल उठता था चेहरा हमारा ।

लेकिन आज तुम्हारी ही नजर-
मुझ पर पड़ गई।
अति दोहन के लिए तुमने-
भर डाला मेरे निचे की जमीं को-
खतरनाक रसायनों से।

अब मुझे मिट्टी से –
नहीं मिलता-
जीवनदायक खाद्य और जल।
मिलने लगा है जिवननाशक रसायन।

तुमने बढानें के लिए अपनी तपन-
जला डाला मेरी हरी -भरी डालियों को-
अब बिछुड़ गई मेरी सहेलियाँ भी,
खडा हूँ मैं ठुठ , नीरस अकेला।

अब मैं असमर्थ हु-
मिटाने में तुम्हारी तपन, क्षुधा और तृष्णा।
मुझे माँफ करना।
हे ! पथिक मुझे माँफ करना।

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