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पहली जनवरी को यह सोचकर सुबह जल्दी उठा की सबकुछ नया- नया दिखेगा. पिछले रात से ही नए वर्ष की ढेर सारी शुभकामनायें प्राप्त कर चूका था. मुझे लग रहा था की आज सूरज नया, धरती नई, हवाये नई, लोगो की सोच नई देखने को मिलेंगे. नई ताजगी, नया उत्साह, नया जोश के साथ आज से मेरी जिंदगी शुरू होगी. लेकिन ये क्या ? यहाँ तो कुछ भी नया देखने को नहीं मिल रहा है. वही सूरज, वही धरती, वही प्रदूषित हवा, वही पुराने लोग. अचानक मेरी नजर मेरे डायनिंग हाल के एक दिवार पर गई. यहाँ एक परिवर्तन दिखलाई दिया. वहाँ पूरानी कैलेण्डर की जगह पर नया कैलेण्डर लगा दिया गया था. मैं मन ही मन खुश हुआ चलो कम से कम कैलेण्डर तो बदल गया. पुराना कैलेण्डर जिस पर नजर पड़ते ही दिखा जाता था पिछले वर्ष की उपलब्धियां. पिछले साल भी लोगो को दी गई होगी ढेर सारी शुभकामनाएँ. नव बर्ष मंगलमय होने की कामना. लेकिन कितना मंगलमय रहा पिछला साल इसका प्रमाण था पुराना कैलेंडर. घोटालो भरा साल, दुर्घटनाओं का साल, महान हस्तियों को खोने का साल, सत्ता में बैठे लोगो के खिलाफ जनाक्रोश का साल और जाते जाते इस साल ने लगा दिया हमारे मर्दान्गिनी पर काली स्याह. हमने पिछले साल खो दिए कलयुग के हनुमान दारा सिंह, रोमांस के सरताज राजेश खन्ना, महान चरित्र अभिनेता A K हंगल, हिदू ह्रदय सम्राट बाल ठाकरे, साहित्यकार सुनील गांगुली, पूर्व प्रधानमंत्री ईन्द्र कुमार गुजराल जसे महान विभुतियों को. जुलाई- अगस्त का महिना असम दंगा के नाम रहा. जो भी हो गुजर गया पिछला साल. बदल गया मेरा कैलेण्डर. नया कैलेण्डर नई आशाएं नइ उमंग. मुझे अब जाकर पता चला की नए वर्ष में कुछ नहीं बदलता सिवाय कैलेण्डर के. अतः बदलनी होगी अपनी सोच, जीना होगा हमें समाज के लिए. बनाना होगा भ्रष्टाचार, आतंक, कुपोषण मुक्त समाज. जहा सभी को सर उठकर जीने का मिले अधिकार. और तब जाकर होगा प्रत्येक दिन नया वर्ष, प्रत्येक रातें दिवाली और प्रत्येक दिन होली का.
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